बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण
प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य की सर्थकता सिद्ध कीजिए।
अथवा
भारतीय मतानुसार उपमाओं के प्रयोग में कालिदास अनुपम हैं। विवेचना कीजिए।
उत्तर -
इसमें कोई सन्देह नहीं कि उपमा के क्षेत्र में कविकुलगुरु महाकवि कालिदास अनुपम हैं। इनकी उपमा योजना, सरसता, रम्यता, विविधता एवं मार्मिकता की दृष्टि से बेंजोड़ है। साथ ही ये उपमायें भावानुकूल श्लेष की जटिलता से रहित अनुठी एवं विषयानुकूल हैं। ये स्पष्ट एवं नित्य व्यवहार में देखी जाने वाली होने के साथ ही शास्त्रीय विषयों में अनुप्राणित हैं। कोई भी वस्तु सौन्दर्य उसकी निरीक्षण वृत्ति से बाहर नहीं जा सका है। उसकी सभी उपमायें प्रसंगानुकूल हैं। वह उचित उपमा विन्यास में सिद्धहस्त हैं। उनकी उपमाओं में नूतन कल्पनायें परिलक्षित होती हैं।
अलंकार शस्त्रियों ने प्रधान अलंकार उपमा को ही माना है। उनका कथन है कि वस्तुतः प्रधान अलंकार उपमा ही है जोकि शैषी की तरह काव्य रङ्गमंच पर विविध वेश बदल कर अन्य अलंकारों के रूप में आती हैं -
रञ्जयति काव्यरङ्गे नृत्यन्ती तद्विदां चेतः॥
साहित्य दर्पणकार ने उपमा का लक्षण इस प्रकार बतलाया है -
साम्यं वाच्यमवैधर्म्यं वाक्यैक्य उपमा द्वयोः।
अर्थात् वाक्य के एक होने पर दोनों (उपरमान, उपमेय) का वैधर्म्यय से रहित (विरुद्ध धर्मों में रहित) अभिधेय (इत्यादि शब्दों में अभिधेय) सादृश्य (गुण क्रिया रूप) उपमा कहलाती है।
उपमालंकार के अनेक भेद हैं। कालिदास ने प्रायः उपमा के सभी भेदों का प्रयोग अपने काव्य में किया है। अभिज्ञानशाकुन्तलम् में उनकी उपमायें अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गयी है। शकुन्तला के रूपलाव्णय का अवलोकन कर राजा दुष्यन्त के हृदय में जो ललित उद्गार उद्भूत होते हैं उनको कवि निम्नलिखित श्लोक द्वारा स्पष्ट करता है -
रनांविद्ध रत्नं मधु नवमनास्वादितरसम्।
अखण्डं पुण्यानां फलमिव च तदूपमनधं,
न जाने भोक्तारं कमिह समुपस्थास्थति विधिः॥
इस श्लोक में शकुन्तला के स्वाभाविक सौन्दर्य को विविध उपमाओं द्वारा स्पष्ट किया गया है। शकुन्तला का लावण्य किसी व्यक्ति के द्वारा न सूंघे गये पुष्प के समान नाखूनों के अग्रभाग से छेदे गये नूतन किसलय के समान, न बींधे गये रत्न के समान जिसके रस का आस्वादन अभी तक नहीं किया गया है ऐसे नवीन मधु के समान तथा पुण्यकर्मों के अखण्ड फल के समान वर्णित है। कवि कालिदास की उपमा की यह विशेषता है कि वह विषय को और अधिक स्पष्ट करती हुई अभिव्यञ्जना में सहायक सिद्ध होती है। साथ ही साथ उसमें ऐसी मनोवैज्ञानिकता रहती है, जिससे पाठकों का मन सहसा ही विषय की ओर आकृष्ट हो जाता है और विषय की भावुकता में स्वयं खो जाता है। कवि की उपमायें सहज साम्य के ऊपर ढली हैं। यर्थाथ और स्पष्ट तो वे इतनी अधिक है कि पाठकों के मन में वर्णनीय पदार्थों की यर्थाथ कल्पना उत्पन्न की जाती है। हस्तिनापुर जाते हुए ऋषिकुमारों के बीच शकुन्तला ऐसी ज्ञात होती है मानों पीले पत्तों के बीच नवीन किसलय उत्पन्न हो -
"मध्ये तपोधनानां किसलयमिव पाण्डुपत्राणाम्'
वृद्ध एव सूखी ऋषियों की आकृतियों के बीच पल्लवित लता जैसी युवती शकुन्तला के लिये यह उपमा कितनी यर्थाथ है। इसी प्रकार उसकी अधरलालिमा किसलय राग के समान है, भुजायें कोमल शाखायें जैसी हैं और प्रत्येक अंग में लताकुसुम सदृश यौवन व्याप्त है -
कुसुममिव लोभनीयं यौवनमङ्गेषुसन्नद्धम्॥'
शकुन्तला का वल्कलावृत शरीर सिवार में लिपटा हुआ कमल है। आपन्नसत्वा शकुन्तला के अप्रतिम लावण्य से भ्रमित राजा दुष्यन्त की वही दशा हो रही है जोकि उस भ्रमर की होती है जोकि प्रातः काल तुषार से भरे हुए कुन्द पुष्प कान तो मकरन्द पान ही कर सकता है और नद उसे छोड़कर अन्यत्र ही जा सकता है।
इन उपमाओं की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये सृष्टि के विविध पदार्थों लता वृक्ष, फूल, फल, प्राणि-वर्ग, आकाश, सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र आदि से ली गयी है। महर्षि कण्व को सहसा प्राप्त नवजात शकुन्तला अर्क वृक्ष पर संयोगवश गिर पड़ने वाला नवमालिकाकुसुम ही है -
"अर्कस्योपरि शिथिलं च्युतमिव नवमालिकाकुसुमम्।'
कुमारसम्भव में मदनदाह से विहला रति तालाब सूख जाने से जलाभाववश छटपटाती हुई मछली है अथवा अकेली पड़ी शोभाहीन कमलिनी सदृश है, इत्यादि।
लिङ्गसाम्य, वर्णसाम्य यथार्थता एवं स्पष्टता के अतिरिक्त कालिदास की उपमाओं की एक विशेषता यह भी है कि वे वातावरण के अनुकूल एवं शास्त्रानुप्राणित हैं। शास्त्रों के व्यासंग से भी उन्होनें सुन्दर उपमाओं की कल्पना की है। ब्रह्मसरोवर से निकलने वाली सरयू नदी सांख्यशास्त्र के अव्यक्तमूल प्रकृति से उत्पन्न होने वाले बुद्धि तत्व के समान है। नन्दिनी गौ के पीछे-पीछे चलने वाली राजा दिलीप की पत्नी सुदक्षिणा श्रुति के अर्थ के पीछे चलने वाली स्मृति के समान है
"श्रुतोरिवार्थंस्मृतिरन्वगच्छत्। "
इन्दुमती स्वयंवर में जिस जिस राजा को छोड़कर आगे बढ़ती जाती है, उस-उस राजा के मुख पर निराशा की कालिमा उसी प्रकार छा जाती थी जैसे राजपथ की अट्टालिकायें जिन्हें रात्रि में आगे बढ़ती दीपशिखा ने पीछे छोड़ दिया है। कालिदास की यह सर्वश्रेष्ठ रचना है इसलिए उनकी उपाधि भी दीपशिखा हुई -
यं यं व्यतीयाय परिवंश सा।
नरेन्द्रमार्गाटट इव प्रपेदे,
विवर्णभावं सस भूमिपालः।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि कालिदास की उपमायें अद्वितीय हैं। उनकी उपमाओं में सजीवता, सरसता, स्वाभाविकता एवं विषयानुकूल भावबोधकता विद्यमान है। उनकी उपमायें सर्वजनीन है। सर्वसाधारण उनका रसास्वादन कर सकता है। अतएव उनके विषय में उचित ही कहा गया है -
"कविकुलगुरुः कालिदासोविलासः।'
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- प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
- प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
- प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
- प्रश्न- 'भासो हास:' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
- प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
- प्रश्न- भास के द्वारा रचित नाटकों में, रचनाकार के रूप में क्या मतभेद है?
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के चित्रण में पुण्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष महावैयाकरण थे - उनके काव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'अश्वघोष की रचनाओं में काव्य और दर्शन का समन्वय है' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
- प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
- प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
- प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- महाकवि भवभूति के प्रकृति-चित्रण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
- प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
- प्रश्न- क्या अभिनय की दृष्टि से वेणीसंहार सफल नाटक है?
- प्रश्न- भट्टनारायण की जाति एवं पाण्डित्य पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण एवं वेणीसंहार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का रचयिता कौन है?
- प्रश्न- विखाखदत्त के नाटक का नाम 'मुद्राराक्षस' क्यों पड़ा?
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का नायक कौन है?
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटकीय विधान की दृष्टि से सफल है या नहीं?
- प्रश्न- मुद्राराक्षस में कुल कितने अंक हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "वैदर्भी कालिदास की रसपेशलता का प्राण है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के नाम का स्पष्टीकरण करते हुए उसकी सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य की सर्थकता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास के स्थितिकाल पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के नाम की व्युत्पत्ति बतलाइये।
- प्रश्न- 'वैदर्भी रीति सन्दर्भे कालिदासो विशिष्यते। इस कथन की दृष्टि से कालिदास के रचना वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के प्रधान नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- शकुन्तला के चरित्र-चित्रण में महाकवि ने अपनी कल्पना शक्ति का सदुपयोग किया है
- प्रश्न- प्रियम्वदा और अनसूया के चरित्र की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में चित्रित विदूषक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् की मूलकथा वस्तु के स्रोत पर प्रकाश डालते हुए उसमें कवि के द्वारा किये गये परिवर्तनों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रधान रस की सोदाहरण मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास के प्रकृति चित्रण की समीक्षा शाकुन्तलम् के आलोक में कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शकुन्तला के सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् का कथासार लिखिए।
- प्रश्न- 'काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला' इस उक्ति के अनुसार 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की रम्यता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 4 स्वप्नवासवदत्तम् (प्रथम अंक) अनुवाद एवं व्याख्या भाग
- प्रश्न- भाषा का काल निर्धारण कीजिये।
- प्रश्न- नाटक किसे कहते हैं? विस्तारपूर्वक बताइये।
- प्रश्न- नाटकों की उत्पत्ति एवं विकास क्रम पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक की साहित्यिक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर भास की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के अनुसार प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाराज उद्यन का चरित्र चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की नायिका कौन है?
- प्रश्न- राजा उदयन किस कोटि के नायक हैं?
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर पद्मावती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सार संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- यौगन्धरायण का वासवदत्ता को उदयन से छिपाने का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'काले-काले छिद्यन्ते रुह्यते च' उक्ति की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- "दुःख न्यासस्य रक्षणम्" का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिये (रूपसिद्धि सामान्य परिचय अजन्तप्रकरण) -
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
- प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूप सिद्धि कीजिए - (पहले किम् की रूपमाला रखें)